एकाग्रता | ध्यान

क्या आपके साथ ऐसा हुआ है जिसमें किसी प्रश्न का आपका उत्तर रहा हो — ''ध्यान नहीं रहा।'' अगर आपके साथ ऐसा नहीं हुआ है तो आप अपने आपको बहुत खुशनसीब मान सकते हैं क्योंकि यह उत्तर उन्हीं लोगों का होता है जिनकी एकाग्रता शक्ति कम होती है, जो अक्सर ध्यान भूल जाते हैं।

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शायद आपको यकीन न हो पर इस ध्यान में बड़ी शक्ति होती है। इसके प्रमाण के तौर पर आप उन प्राकृतिक घटनाओं को देख सकते हैं जिनमें ध्यान की शक्ति का जिक्र किया गया है।

ध्यान का अर्थ यह नहीं है कि आपने कोई वस्तु कहां रखी, उसका स्मरण होना। ​बल्कि ध्यान का अर्थ यह होता है कि वह प्रत्येक कार्य, गतिविधि या जिक्र जो कभी आपके मनोमस्तिष्क में आया है, उसको सहजता से स्मृति में बनाए रखना। ध्यान का दूसरा अर्थ यह भी होता है कि सारी दुनिया भूलकर पूर्ण समर्पण के साथ अपने लक्ष्य पर एकाग्र हो जाना।

आपने कभी बगुले को देखा है, वह पानी में एक बुत की तरह खड़ा होता है भले ही उस पर कोई आक्रमण कर दे, उसे अपने आसपास की परवाह नहीं होती है। शिकार पर ध्यान लगाए बगुले को सिर्फ इतना याद रहता है कि उसका शिकार कहां है और कब उसे शिकार पर अटैक करना है। 

ध्यान लगाने का एकमात्र आधार आंख होती है। यही एक इन्द्री है जो हमें लक्ष्य तक पहुंचने में सर्वाधिक सहायता करती है। लेकिन इस इन्द्री को वश में रख पाना इंसान के सामर्थ्य की बात नहीं होती है। हालांकि कुछ लोग अपने लक्ष्य के प्रति एकदम दृढ़संकल्पित होते हैं परंतु वह 100 में से 10 प्रतिशत ही होते हैं। बाकी लोग अपने इन्द्री को वश में नहीं कर पाते हैं और रंगारंग दुनिया से प्रभावित होकर उसकी ओर आकर्षित होने लगते हैं। 

यह पोस्ट हमारे निजी विचारों पर आधारित है। अगर आप एक आशुलिपिक हैं तो आपके लिए इस पोस्ट में 120 शब्द प्रति मिनट गति के एक श्रुतलेख की डाउनलोड लिंक दी गई है जिसे आप डाउनलोड कर सकते हैं।

ध्यान के मार्ग में दूसरी इन्द्री कर्ण भी होती है, इसे आप कान कहते हैं। हालांकि यह चक्षु की अपेक्षा अधिक प्रभावकारी नहीं है परंतु आप अगर इसके प्रति लापरवाह होते हैं तो यह आपको अपने लक्ष्य की एकाग्रता से डिगा सकती है। 

कल्पना कीजिए आप किसी लक्ष्य पर निशाना साध रहे हैं और तीर चलाने, गोली मारने या अन्य किसी अंतिम समय में अचानक से आपको कोई आवाज सुनाई देती है तो अनायास ही आपकी एकाग्रता भंग हो जाएगी और आप चाहकर भी अपने लक्ष्य को भेद नहीं सकेंगे। 


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उपरोक्त दोनों इंद्रियां हमारे अध्ययन और सफलता में भी उतनी ही महत्व वाली हैं। भले ही आप इससे सहमत न हों परंतु वास्तविकता यही है चक्षु और कर्ण का नियंत्रण ही हमारे लक्ष्य की प्राप्ति शीघ्र और विलंब से सुनिश्चित करता है। 

अगर आप आशुलिपिक हैं तो इस बात का भान आपको जरूर हो चुका होगा कि आपके श्रुतलेखन के समय आपकी कर्ण इन्द्री आपकी लेखन क्षमता को कितना प्रभावित करती है। इसी प्रकार से लक्ष्य का चयन करने और उसके लिए संकल्पित रहने में चक्षु हमारे मददगार और राह भटकाने वाले होते हैं। अगर आप दृढ़संकल्पित हैं तो अच्छी बात है, अन्यथा आप किसी दूसरी चमक में आप जरूर अपने लक्ष्य को नजरअंदाज करने लगेंगे।